कोरोना और हम
कोरोना और हम
सारी दुनिया जिए या मरे हमें क्या,
हमारी दुकान चलती रहनी चाहिए।
शराब का नशा है महामारी,
लेकिन तुम लोग पीते रहना चाहिए।
तुम्हारे बच्चों को रोटी मिले न मिले हमें क्या,
हमारा खजाना भरते रहना चाहिए।
बेअसर विदेशी दवा दुगने दाम,
बर्बादी में मातम नचाएंगे सरेआम।
पर घर का आयुर्वेद जो साथ भी दे,
तो उसे कटघरे में खड़ा रहना चाहिए।
नौकरी गयी हो तो कोई बात नहीं,
3 महीनेकी भुगतान मत करो ,
पर मोटरकारें बिकती रेहनी चाहिए।
तूम्हारे घर में आग लगी हो कोई बात नहीं,
पर हमारे यहाँ रौशनी कम न होनी चाहिए।
खुद दुश्मनों के टुकड़ों पे पलना ,
और स्वदेशी का मजाक उड़ाना चलते रहना चाहिए।
कोई लटके और शांत हो जाए, उस से हमें क्या ,
हमारा रुतबा बरक़रार रहना चाहिए।
जवान सरहदों पर कटते हैं
उनके घरवाले घर पर मरते हैं
बद तमीज इसे काम और नसीब कहते हैं
कोई कितना भी बेहाल हो जाए तो कोई बात नहीं
इनके विचारों को घी मिलती रेहनी चाहिए
ऐसी घटिया सोच में हजारों साल यूँ ही नहीं गुजरे।
ऐसे बदसूरत विचारों को तड़ीपार करना चाहिये।
