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Aradhana Mishra

Tragedy Others

4  

Aradhana Mishra

Tragedy Others

काश

काश

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काश परिंदों सी आज़ाद

होती जिंदगी,

काश अपनी ख्वाहिशों

से आबाद होती जिंदगी,

मेरी मुस्कुराहट पे,

मेरे होठों पर कोई हाथ

ना रख पाता,

अगर पे‍हले से ही,

मेरे मर्ज़ी सी आसान

होती जिंदगी,


मैं निर्दोष थी हर उस

पते पर,

जहाँ मुझे कटघरे में

लाकर खड़ा किया था,

ग़लती सिर्फ इतनी सी थी मेरी,

किसी पे मैंने इन्सां होने

का भरोसा किया था,


हर रोज़ देहलीज़ पे खड़े खड़े,

मेरे खयाल में हज़ार सवाल उठते हैं,

ख़्वाब रोज़ संजोती हूँ उड़ने का,

रोज़ मेरे ही हाथों मेरे पर कटते हैं,


किसी साज़िश का शिकार तो नहीं,

पर खुद की ख़ुदकुशी का मुझ

पर इल्ज़ाम ज़रूर आएगा,

मैं जिंदा तो कल भी रहूँगी,

अफसोस मेरे बंदिशें मेरी रूह

को मुझसे छीन कर ले जाएगा,


मेरी आवाजें एक बार फिर,

अन सुने कर दिए जाएंगे,

ये कायदे हैं ना समाज़ के,

इनमें से रिहा करने मुझे,

मेरे फरिश्ते भी ना आएँगे।


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