चिड़िया (लड़की)
चिड़िया (लड़की)


चिड़िया हूँ मैं
बस उड़ने दो मुझे
साँस तो चलती है
पर कभी तो जीने
भी दो मुझे।
क्यूँ बार बार
क़ैद करना है तुम्हें
मुझे
अपनी नज़रों में
अपनी बाहों में
कभी बीच में
किसी राहों में
चार दीवारों की
अनचाहा पनाह में
क्यूँ रखना है तुम्हें
कैद मुझे?
हक़ क्या मेरा नहीं
मुस्कुरा के मैं भी
साँस लूँ
हक़ क्या मेरा नहीं
दूर गगन में
मैं भी उड़ सकूँ
क्यूँ है काम मेरा
बस तेरे काम आना
तूझे मोह है मेरा
तो बस तेरी मोह में
मोह जाना
दर्द का मेरे एक
हिसाब अलग है
तेरे बेदर्दी का कोई
जवाब नहीं
तू हँसता है इसलिए
तू हँसता है इसलिए
मेरे कदम में
बेड़ियाँ पड़ती हैं
लगता है समाज के
ज़हन का
कोई दूजा स्वभाव नहीं।
कोई तो हो
जो जिस्म से उभर
कर आए
कोई तो हो
जो सीने की धड़कन
बन पाए
कोई तो हो
जो पलकें झुका कर भी
क़ैद कर ले
कोई तो हो
जो बिन दीवारों के
घर कर जाए
जिसकी आहट से
मेरे कदम ना डगमगाए
जिसके सामने होने पर
मुझे खुद पे शरम ना आए
कोई तो हो
जो कैदी बना कर नहीं
मुझे सिर्फ चिड़िया होने
का एहसास दे
आसमान में उड़ने दे
ज़िन्दगी की एक
नई आस दे
दबी दबी सहमी
सहमी सी नहीं
खुल के जीने वाली साँस दे।