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अनजान रसिक

Drama Others

4.7  

अनजान रसिक

Drama Others

मौसम प्यार का !

मौसम प्यार का !

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प्यार करने का कोई मौसम कोई शुभ दिन और अवसर कहाँ होता है ?

जिसका नाम ही पतित पावनी गंगा के सामान निर्मल है ,

उसे मनाने और उस पर गौरवान्वित के लिए किसी विशेष अवसर को क्या ढूंढना ?

अपितु जिस अवसर में ,जिस लम्हे में प्यार बसा हो ,वो स्वयं ही विशेष हो जाता . 

जिस तरह फूलों को डालों पर खिलने और महकने से पहले कोई इजाज़त नहीं चाहिए ,

भँवरे को फूल पर मंडराने से पहले कोई इजाज़त नहीं चाहिए ,

प्रेम को भी खिलने महकने और अपनी महक चहुँ ओर

फैलाने से पहले किसी की इजाज़त नहीं चाहिए .

प्यार का इज़हार करने को प्यार का मौजूद होना ज़रूरी है ,

ज़रूरत जिसकी नहीं है वो ज़माने की स्वीकृति और मंज़ूरी है .

बरसात होने से पहले बादलों ने कब किसी की इजाज़त ली है ,

बंजर धरती का आलिंगन करने को अधीर बरखा की बूँद ने

कहाँ किसी की मंज़ूरी की दरकार की है .

चाहे कितने भी कांटे क्यों ना हों , पेड़ पर फूल खिल ही जाते हैं ,

फिर हम क्यों ज़माने से डर डर के एक भयावह और

खौफनाक मंज़र में जीते चले जाते हैं ?

समर्थ है मानव ,प्रबल है मानव फिर क्यों किसी की राय का मोहताज है मानव,

सच्चा है, निर्मल है , पाक है प्रेम, पता नहीं इसको जताने से क्यों पल पल डरता रहता,

किसी दिवस का इंतज़ार करता रहता मानव


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