नृत्यरत नारी
नृत्यरत नारी
भावों की अभिव्यंजना से परिपूर्ण नृत्य,
जीवन से ओतप्रोत नाचते से अपूर्ण कृत्य;
कितनी भंगिमाएँ कितने ही खूबसूरत उद्गार,
प्राकट्य हुई ज्वाला मन में भरे असीम प्यार;
नृत्यरत तल्लीन ज़िन्दगी की सुर ताल समेटे,
वात्सल्य की प्रतिमूर्ति...समेटे आँचल में संसार;
बनती...उकेरती मुद्राओं से भंगिमाएं हज़ार,
कितने भाव कितने रस,
निकलती ऊर्जा से जन्मा सम्बल बना आधार;
हर तरफ बज उठते नूपुर,आलम्बन प्रिय से सराबोर,
तज कर काम क्रोध मोह वो नाचती अपनी ही धुरी पर;
सहेजती जाती अंतरिम स्वयं में नए श्रृंगार
जिनमें गति है,लय है,ज्वाला है और अभिसार।