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Kavita Verma

Drama Romance

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Kavita Verma

Drama Romance

बस यूँ ही

बस यूँ ही

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देर रात तक तारों संग,

खिलखिलाने को जी चाहता है। 

चाँदनी के आँचल को खुद पर से,

सरसराते गुजरते जाने को जी चाहता है। 


पीपल की मद्धिम परछाई से छुपते छुपाते,

खुद से बतियाने को जी चाहता है। 

चलते देखना तारों को ओर खुद,

ठहर जाने को जी चाहता है। 


रात के सन्नाटे में पायल की आहट दबाते,

नदी तक जाने को जी चाहता है। 

दिल में छुपा कर रखे अरमानों को,

खुद को बताने को जी चाहता है।


तेरी मदहोश कर देने वाली बातों को सुन,

जी जाने को जी चाहता है। 

तू नहीं आस पास फिर भी,

तेरे होने के एहसास को ओढ़

सो जाने को जी चाहता है।



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