पिया बावरी
पिया बावरी
कूक रही कोयलिया प्यारी
आज मेरे अँगना में
साजन आओ भी अब
बहुत तरसे तेरी चाहत में
फूलों के गहनों से शृंगार किया
तेरे ही इंतज़ार में
कुमकुम, बिंदियाँ,नथ
और कँगन आहें भरे राह में
झूम उठा सारा आलम
पिया मिलन की चाह में
यादें तेरी देती सुंकूँ है,
विरह भरी,काली रातों में
बस भी करो,यूँ न तरसाओ
ले भी लो आगोश में
मदहोशी ही भली लगे अब
न रहना चाहूँ होश में
तुम बिन कुछ भी नहीं,
तू है चाँद मेरा, हूँ चकोर मैं
नज़र न लगे तुझे,बसा लूँ
बावरे नयनों की कोर में
पिया बावरी हुई जाऊँ
गिरिधर मेरे, तेरी राधा हूँ मैं
जनम-जन्म का साथ हमारा
बंधे अनोखे बन्धन में।