परहित
परहित
है ये मुश्किल दौर बहुत,पर
फिर भी हमें जीवट रहना है
चाहे आये तेज़ आँधिया
डर कर नहीं छुप जाना है
इस घने अँधेरे में भी आस
का दीप जलाना है
घोर विपदा आन पड़ी है
पर हार नहीं जाना है
आस पास देखा है तुमने
कितनी बदहवासी छाई है
वक्त यही है मेरे प्यारे ,
अब मानवता निभानी है
थाम हाथ एक दूजे का ये
कठिन घड़ी बितानी है
अपनो से जो दूर हुए बेवक्त
उनकी पीड़ा अब हरनी है
मनुज वही है सच्चा जो
इस पल अलख जगाएगा
भेदभाव को परे रख कर
जब सेवाभाव दिखाएगा
करके भला अनजानों का
तू दिल से खुशी पायेगा
अपने लिए तो जिया हमेशा
परहित में असीम सुख पायेगा
कर ले मनन हे मानव तू भी
देव की सीख जान जाएगा
धन दौलत सब यही है रहनी
बस सत्कर्म साथ ले जाएगा
मानव ,मानव की रक्षा कर तू
खुद ही अवतार बन जायेगा
तब आएगा धरती पर नवयुग
शापित कलुष मिट जाएगा ।
