मेरें शब्द
मेरें शब्द
शायद यही मंजूर रहा होगा उस ख़ुदा को,
तभी तो उसने मुझसे तुम्हें मिलवाया।। 1
रात घनेरी तेज हवाओं का साथ तुम्हीं को था
शायद किसी सराय का इंतजार तुम्ही को था ।।2
दरवाजे पर तुम्हारी दस्तक, आँख खुली बिस्तर पर,
मैं दरवाजे तक दौड़ा आया, देखूँ कौन चौखट पर ।।3
तुम्हें देख मैं घबराया, पर पहले दिल को समझाया,
पूछा अपने मन में ये कौन इतनी रात को आया।।4
थी काँपती वो थर थर, और कहना कुछ चाहती थी,
पर समय के भंवर से ओंठ उसके साथ न थे।।5
वो अंदर आयी घर में मेरे अंदर आने के कहने से,
आग जलाई फिर मैंने उसके एक कहने भर से।।6
सेंक अंगीठी उठी वो जब वापस घर को जाने को,
सारी कायनात चुप थी उसे यहाँ से भगाने को।।7
और शायद वो लौट आती पर मैंने उसको रोका नहीं,
क्योंकि वो सिंदूर मांग रही थी खुद को फिर से सजाने को ।।8 ...