मैं उदास हूँ, पर दुःखी नहीं
मैं उदास हूँ, पर दुःखी नहीं
मैं उदास हूँ, पर दुःखी नहीं
टूटी तो हूँ, पर झुकी नहीं ।
कई बार मुझको रोका
कई बार मुझको टोका
स्त्री हो, स्त्री रहो तुम
हद पार ना करो तुम
सीमा ना लाँघ जाओ
दहलीज में रहो तुम
नारी पे ये नियंत्रण, अब तक रुकी नहीं।
कपड़े ना छोटे पहनो
ना हँस के ज्यादा बोलो
परदे में सीखो रहना
मर्यादा तुम ना भूलो ।
हर बात मानी मैंने
गुस्ताखी एक कर दी
दुनिया को देखने को, नज़रें झुकी नहीं।
दुनिया ये सह ना पाई
दे दी सज़ा मुझे एक
चीर फाड़ दिए मेरे
अंगों को नोच डाला
कुचला मेरे बदन को
झकझोर मन को डाला
ये कृत्य करते उनकी, नज़रें झुकी नहीं।
जी चाहा, मर ही जाऊँ
जी करके क्या करूँगी
समाज के नज़र का,
क्या सामना करूँगी ?
खुद को बहुत सँभाला
जीवन का साथ दूँगी
जीवन की एक आशा, अब तक रुकी नहीं।
जिन दायरों में हम थे
उनमें वो लोग होंगे
स्त्री को जो मात्र वस्तु
समझा किया करेंगे,
अब जोर ना चलेगा
हम ना सहेंगे अब कुछ
आई ये आत्मशक्ति और मैं रुकी नहीं।
मैं उदास हूँ, पर दुःखी नहीं
टूटी तो हूँ, पर झुकी नहीं।
