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पूर्णेश्वर पाण्डेय

Inspirational

3  

पूर्णेश्वर पाण्डेय

Inspirational

मानवता अपनाऊंगा

मानवता अपनाऊंगा

1 min
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वन विभाग के घरौंदों में

जैसे चंद पत्र लिए नवकोपल था,

मैं भी माँ के आँचल में

वैसे ही निश्छल निश्चिन्त पड़ा था।


उमड़ कर काले मेघों में

जैसे अम्बर ने उसे पाला था,

सींच संजीवनी आँचल में

वैसे ही माँ ने भी मुझे पोषा था।


गर्मी सर्दी धुप छावं

जैसे कर रहे थे मजबूत उसे,

लाड प्यार डाँट पिटाई

वैसे ही कर रहे थे मजबूत मुझे।


मीठे स्वादिष्ट फल लिए

जैसे झुक गयी डालियाँ थी,

दौलत शोहरत साथ लिए

वैसे ही क्यूँ झुक पाया न मैं ?


निःस्वार्थ की छाँवं लिए

जैसे परमार्थ को त्तपर खड़ा था,

समता का भाव लिए

वैसे ही क्यूँ झुक पाया न मैं ?


पत्थरों की मार पर

जैसे उसने मिठास लूँटाई,

हृदयाघात करते लोगों पर

वैसे ही क्यूँ लुटा सका न प्रेम मैं ?


मैं खुद को बड़ा मानता रहा

पर वो मुझ से कहीं श्रेष्ठ था।

मैं खुद को मानव कहता रहा

पर वो कहीं मानवता लुटा रहा था।


अब जान चूका मैं भूल अपनी

छोड़ अभिमान मानव का

मानवता अपनाऊंगा,

टूट टूट कर उस वृक्ष के जैसे

मैं भी सबके लिए जीऊंगा,

छोड़ अभिमान मानव का

मानवता अपनाऊंगा।




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