मैं देख रहा हूँ
मैं देख रहा हूँ
मैं देख रहा हूँ,
फूलों से झड़ती पंखुड़ियों को...
जो मिट्टी में खुशबू रोपण को तैयार हैं।
मैं देख रहा हूँ,
पत्तों को अलविदा कहते साखों को...
जो नवपल्लव धारण करने को तैयार हैं।
मैं देख रहा हूँ,
साँझ होते खगों की अधीरता भरी उड़ान को...
जो अपनों को पोषित करने चोंच भर लाए हैं।
मैं देख रहा हूँ,
प्रकाशपुंज के उस निस्तब्ध ढलान को...
जो कल एक नवयुग ले उदित होने को तैयार है।
हो चुप ! मैं देख रहा हूँ,
वह मेरे भीतर वसंत गाता है।
