माँ
माँ
माँ कहने को तेरी पूरी ही दुनिया है,
मग़र क्या इतनी इज्ज़त ही पाती है,
ये संस्कृति तो सारी उन्ही की है,
जहाँ औलाद आज़ादी ही चाहती है।
पहले तो हम बस बच्चे ही थे,
मन के तो हम तब सच्चे ही थे,
माँ का हर रूप अच्छा ही लगता था,
संसार माँ बिन अधूरा सा लगता था।
फिर जब से नया जीवन शुरु हुआ,
माँ से दूर जाते ही चेहरा भूलने लगा,
चाहतों का नया कारोबार शुरु हुआ,
माँ का साया सिर से दूर होने लगा।
उसने सारा जीवन तेरे नाम किया,
तुम ने माँ को वृद्धा आश्रम दिया,
मातृ दिवस अब ऐसा मनाया तुमने,
कि एक ही दिन में कर्ज़ उतार दिया।