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Neha anahita Srivastava

Tragedy

4.5  

Neha anahita Srivastava

Tragedy

माँ

माँ

1 min
423


समय का चक्र चलते देखती है माँ,

चाभियाँ जिस घर की अपने आँचल के छोर पर बाँधती थी माँ,

उस घर में अपनी जगह तलाशती है माँ,

दीवार के कभी इस पार,कभी उस पार,

कभी बड़े,कभी छोटे बेटे के पास रहती है,माँ

इस पार हो या उस पार हो

एक ही जगह खाट डालकर बैठती है,माँ

कुरेदती कच्ची दीवारों को,

मानो कुछ लिखती है,माँ

भगवान का नाम या

बचे-खुचे दिन अपने आखिरी गिनती है,माँ

दिन बीते,महीने बीते

फिर बीते कई साल,

माँ बूढ़ी और बूढ़ी हो गई,

एक दिन,उसी खाट पर

नम पलकों के साथ ,

माँ दुनिया को छोड़ गई,

माँ नही रही,

नही रही माँ,

एक दिन जब पाँव में चोट आई,

बड़े बेटे को माँ की बहुत याद आई,

दीवार के पास आकर,

आसमान की तरफ देख कर मन ही मन ,

उसने माँ को आवाज़ लगाई,

कच्ची दीवार के उस हिस्से से मिट्टी झड़ आई,

एक सूराख नज़र आया,

दीवार के उस पार से भाई का चेहरा नज़र आया,

माँ,सूराखों से ममता लुटाया करती थी,

दिल के दो हिस्सों को सूराख से जोड़ जाया करती थी,

दोनों को सूराख में छुपा प्यार नज़र आ गया,

आसूँओं के संग दिल की मैल धुल गई,

दीवार,वो दीवार टूट गई,

लेकिन टीस लेकर माँ दुनिया से चली गई,

शायद,शायद अब,

आसमाँ में करके सूराख देखती होगी माँ,

समय के चक्रव्यूह में जीत हुई या हार सोचती होगी माँ"!



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