शाबाशियां
शाबाशियां
जीत कर किसी जीवन युद्ध को
जब लौटती हैं स्त्रियां,
नहीं मिलती उन्हें शाबाशियां,
आ चुभते
हैं शब्दों के तीक्ष्ण बाण,
स्वागत करती हैं व्यंगों की तख्तियां
लेकिन
सुनो ऐ स्त्रियों,
भूल कर भी ना बांधना जख्मों पर पट्टियां,
टांग देना सामने किसी दीवार पर व्यंगों की तख्तियां,
थाम कर एक दूसरे की हथेलियां
देना एक -दूसरे को तुम शाबाशियां,
कोमलता का कर विसर्जन, करो युद्ध की तैयारियां,
आत्मविश्वास ले ह्रदय में किलकारियां,
स्वाभिमान को बनाओ अस्त्र तुम,
थाम लो दृढ़ इरादों की कटारियां,
तुम्हारी ओर उठे जो काट डालो वो उंगलियां,
शोर से न तुम डरो,
देखो, मन की आँखों से, ढूंढ़ लो
इस शोर में शाबाशियां और तालियां।
