एक स्त्री का मौन
एक स्त्री का मौन
एक शांत उदधि,
कोलाहल करती है जिसके भीतर,
अनगिनत लहरें,
ऐसा होता है
एक स्त्री का मौन,
समाहित हैं इसके भीतर,
पंछियों के स्वर,
हवा की सरसराहट,
बूँदों की टिप-टिप,
नदियों की कल- कल,
हास्य और रूदन
गीत और संगीत
समस्त राग और रागिनियां,
समस्त अक्षर,समस्त शब्द,
हर सूक्ष्म ध्वनि समाहित है
स्त्री के मौन में,
किंतु
प्रतिपल,प्रतिक्षण,
घुलती जाती है,
स्त्री स्वयं अपने मौन में,
नमकीन अश्रुओं का खारापन
है इस मौन में,
पिघलती जाती है जिसमें,
स्त्री की निश्छल मुस्कान,
मुड़ जाती है शब्दों की नदी,
टकरा कर इस मौन से,
छा जाती है
एक नीरवता,
एक सन्नाटा,
मूक हो जाती है सम्पूर्ण सृष्टि,
समस्त शब्द हैं अर्थहीन,
स्त्री के मौन के समक्ष।"
