"एक दीया आंगन में "
"एक दीया आंगन में "
अभी तो थे उजाले जाने कब अंधेरे हो गये,
उंगली थामे चल रहे थे अभी ,जाने कब तुम बड़े हो गए
भीड़ के खौफ से थे मेरे कांधे पर चढ़ गये,
देखो आज तुम खुद ही जा भीड़ में खो गये,
दिवाली ,दशहरा ,होली सब बेरंग हो गए,
जाने के थे कई रास्ते, वापस आने के रास्ते तंग हो गये,
आई है दिवाली
ना चाहिए मुस्कुराहटों की फुलझड़ियां, खुशियों के पटाखे
लौट जाना घर के आंगन में एक दीया जला के,
हार चढ़ी जो तस्वीर टंगी है सामने दीवार पर
मैं और तेरी मां खड़े हैं जिसमें हाथ थाम कर,
ठहर जाना दो पल को इस तस्वीर के सामने आ के,
देख लेना एक बार हौले से मुस्कुरा के,
देर ना हो जाए फिर लौट जाना तुम सारी बत्तियां बुझा के,
आंगन में केवल एक दीया जला के।
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