तुम कविता हो
तुम कविता हो
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तुम कविता हो,
बिखरे हर अक्षर को थामे,
अर्थपूर्ण शब्दों को रच,
किसी निर्झर की भाँति,
गूँजती प्रतिपल कानों में,
परिभाषित करती जीवन को,
करूणा,प्रेम हर भाव सहेजे,
मन के मौन में,
सहसा घुल जाती हो,
संगीत बन कर
सच ही तो है,
एक सुंदर,सरल कविता हो तुम.
