अजन्मी इच्छाए
अजन्मी इच्छाए
स्त्री मन की अजन्मी इच्छाएं,
आँखों के कोटरों से झांकती हैं,
हर क्षण रुप बदलती,
धीरे-धीरे
धूमिल हो जाती हैं,
अधरों पर मौन के पहरे,
इच्छाएं घुटती जाती हैं
कभी-कभी मध्य रात्रि को,
स्वप्न लोक से,
सहसा ये इच्छाएं
जीवित हो जाती हैं,
एक जघन्य अपराध,
और सहसा पलकें खुल जाती हैं,
बहते काजल के संग,
इच्छाएं बह जाती हैं,
दर्पण के सम्मुख ,
आँखों के नीचे से ,
स्त्री हर साक्ष्य मिटाती जाती है,
और इस तरह इच्छाएं अजन्मी रह जाती है,
इच्छा थी या अपराध स्त्री जीवन भर
यह मनन करती रह जाती है"