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JAYANTA TOPADAR

Drama Action Crime

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JAYANTA TOPADAR

Drama Action Crime

लहज़ा...

लहज़ा...

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जब कोई मजबूर इंसान

किसी क़ाबिल से

मदद की गुहार लगाए,

तो उसे कतई बेग़ैरत न समझें !


हो सकता है कि

हक़ीक़त में उसकी

कोई मजबूरी हो...

क्योंकि ये ज़िन्दगी

न जाने कितने

क़ाबिल इंसान को भी

वक्त की ठोकर

मार-मार कर

नाक़ाबिल बना देती है...!


यही रोज़मर्रा की ज़िन्दगी का

हलफनामा है,

यही सच का दस्तावेज है,

यही इंसानियत का कच्चा चिट्ठा है...

जो हर किसी को असली रंग

दिखा ही जाती है --

चाहे कोई

स्वीकारे या नकार दे...!!


आज जिसके दिल में

बेशुमार दौलत-ओ-शोहरत का

गुरूर है,

क्या मालूम कल वो

भिखारी बन जाए...!


ये वक्त की हेराफेरी,

ये बेरहम हथकंडे --

नामालूम कब नेस्तनाबूद हो जाए

और बस रह जाए आह-ए-दिल, अफसोस

और इंसानियत का मुर्दाघर...


ओ आसमां के झिलमिलाते सितारे!

ज़रा ज़मीन पर भी

नज़र-ए-करम हो,

तो खुदगर्ज़ी की ग़ुलामी से

बाइज्ज़त बरी होकर

थोड़ी-सी दिल-ए-नादान को भी

रोशन करें...!!!



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