लौटरी का टिकट।
लौटरी का टिकट।
एक व्यक्ति,
बहुत गरीब,
खाने पीने के लाले,
रहने को छत नहीं,
पहनने को कपड़ा नहीं,
आने जाने का किराया नहीं,
परिवार पालना कठिन,
कुछ नहीं सूझता,
बस सोचता रहता,
समय का पहिया चलता रहता।
उसका एक दोस्त,
बहुत बड़ा ज्योतिषी,
जो भी कहता,
पत्थर की लकीर होता,
जैसे वो हो,
स्वयं विधाता।
एक दिन,
दोनों गये बाजार,
खरीदने लगे,
लौटरी का टिकट,
ज्योतिषी के पास,
खुले पैसे न थे,
वो ले न पाया,
वहीं टिकट,
उसके दोस्त ने खरीदा,
और घर आ गये।
आखिर वो,
दिन भी पाया,
जब लौटरी निकली,
ज्योतिषी ने,
परिणाम देखा,
वहीं नंबर,
जो वो लेना चाहता था,
वहीं निकला पाया,
फिर उसे याद आया,
उसके दोस्त ने था खरीदा,
झट से,
उसका नंबर मिलाया,
और खुश खबरी को सुनाया।
स्वयं पैसे खुले न होने पर,
टिकट न खरीदने पर,
किस्मत को खूब कोसा,
और पश्चात हुआ।