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Nalanda Satish

Abstract Tragedy

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Nalanda Satish

Abstract Tragedy

लाशें

लाशें

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पूरे चाँद की ख्वाहिश न थी ,आधा भी खूबसूरत मिला

गरीब को रोटी चाँद जैसी दिखी जब पेट सूरज बन मिला


इम्तिहानों का वक़्त खत्म हुआ अब ख़ौफ़ का माहौल मिला

उखड़ती साँसे जता रही है दम निकलने का दौर बाकी मिला


पैरवी नाजायज हुकूमत करने का सिला हमें यह मिला 

जीते जी दोजख में जलते रहे, मरने के बाद न ठिकाना मिला 


आहों को ओढ़कर लाचारी और बेबसी से हलकान मिला

अम्बार देखकर लाशों का कलेजा पानी पानी मिला


लहरे सुख गयी अश्कों में डूबा समंदर बदहवास मिला

लाशों की जलसमाधि से वह भी ठगा सा मिला


यह कैसा कलंक 'नालन्दा' क्या प्रकुर्ति का हमें श्राप मिला ???

कुदरत के कहर से हर एक शख्स डरा हुआ मिला



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