क्या मैं थी क्या हो गयी..?
क्या मैं थी क्या हो गयी..?
चौखट लांघी मायके,चली डगर ससुराल।
पत्थर दिल सजना मिले,दिल में होय मलाल।।
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रिश्तों का मेला सजा,कैसे रखूं संभाल।
घर जंगल सा लागता,संकट है विकराल।।
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भटक गयी है चाल भी,समझ ना आय हाल।
मन बतियां कासे कहूं,फंस गयी किस जाल।।
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सबको मन का चाहिए,सुध ना मेरी कोय।
बहु पत्नी भाभी बनी,खुद को निसदिन खोय।।
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क्या मैं थी क्या हो गयी,सपने सारे तोड़।
डटी रही कर्तव्य पथ,अधिकारों को छोड़।।
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