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Kishan Negi

Tragedy

4  

Kishan Negi

Tragedy

क्या हगो गया है इंसान को

क्या हगो गया है इंसान को

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क्या हो गया है इंसान को 

हर तरफ़ अफरा-तफरी मची है 

कहाँ से उड़कर आया दुश्मन 

जिसने ये ख़ौफ़नाक साज़िश रची है 


जहाँ कल खुशियाँ महक रही थी 

अब बेशुमार लाशों के ढ़ेर पड़े हैं 

कुदरत की ये कैसी विडंबना है 

इस तमाशे में सब लाचार खड़े हैं 


जिस ज्ञान पर कल इतराता था 

सबने देखा है कुछ काम न आया 

तन होगा जब अग्नि के हवाले 

सोचना तूने क्या खोया क्या पाया 


जिंदगी गुजार दी जद्दोजहद में 

उलझ गया ज़िन्दगी का ताना-बाना 

ये जो पल आया है गले लगाले 

फिर कब होगा यहाँ आना-जाना 


हिमालय क्यों आंसूं बहाता है 

हवायें क्यों डरती हैं महकने से 

तन्हाई में ख़ुद से करना सवाल 

गौरैया क्यों सहमती है चहकने से।


 



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