क्या बात है
क्या बात है
सुनो-सुनाएँ हम तुमको,
भीतर की कुछ बाते।
हम अपना परिचय तुमसे,
हैं करवाते।
हम-हमारे पास रहकर,
थोड़ा वक्त गुजारे, तो ?
हम-हमसे हमारा परिचय,
कराएँ तो क्या बात है।
बाहर के रौशनी को तो,
हमने खूब देखा है।
हम अपने अंदर के दीप,
जलाएँ तो क्या बात है।
यहाँ-वहाँ न जाने कहाँ-कहाँ,
हम खूब देखते हैं।
अपनी सूरत से सूरत,
मिलाओ तो क्या बात है।
तन बदन की देख-रेख तो,
होती ही रहती है।
हम अपने ह्रदय को,
महकाएँ तो क्या बात है।
घूमना फिरना तो,
कर लिया खूब हमने।
हम हमारे अंतस में,
पहुँचे तो क्या बात है।
बौछारों में तन्हाई में,
कई बार हमने गीत सुने हैं।
खुद को खुद के गीत,
सुनाएँ तो क्या बात है।