ज़िंदगी की हार में
ज़िंदगी की हार में
ज़िंदगी की हार में ना फिर आँसू बहाओगे तुम
आयेंगी बारिशें जम के फँसलें लहरायेगी फिर से।
रिश्तों की कलाबाजियों में खत्म हुये आँसू भी
सुख-दुःख साथ बाँटे तो घौसले बनेंगे फिर से।
रातें हमारी लंबी हो रही सपने भी नहीं आते अब
मिट्टी में मिल कर हरी-भरी कोपलें उगेगी फिर से।
जख्मों पर नमक छिड़कने वाले हारते नहीं कभी
पथरीले रास्तों में जरुर मंजिलें मिलेंगी फिर से।
हमें रास्ते तय करना है चाहे राह में बिखरे हो काँटे
मन के गहरे सागर में झीलें गहरायेंगी फिर से।