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बाल जीवन

बाल जीवन

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बाल जीवन में हमने खूब हुड़दंग मचाया

माँ-पापा को हमने खुब तरह-तरह से सताया...


निर्भय फूलों सा हमारा जीवन स्वच्छ निर्मल

ना कोई चिंता सताती ना कोई बंधन...


हम ना जाने भेद-भाव निरंतर जीना तरंग में

मन में बड़ी खलबली नित नई साजीशे अंतर में...


माँ कहती थी हो तुम हमारे आँखों के तारे

पापा कहते थे तुम्हे देखकर होते वारे न्यारे...


मस्ती में रहकर अकड़ दिखाकर बन साहबज़ादे

नन्ही जान समझ न पाये परिवार का है प्यार परे...


जब बड़े बनने की जीद मे हम बड़े तो बन गये

जब समझे लाड़ प्यार को तो बसमजबूर हुए...


कुछ दिनों में ही जान गये युग के सुरमा बली चढ़े 

बड़े बन बैठे तो दब गये जिम्मेदारी के बोझ तले...


अंतर्मन में आती उदासी तो हम पश्चाताप करें

लपट-झपट के दुनिया में अपनी चालाकी भूल गए...


बड़े होने की क्या पड़ी थी हमें इतनी भी जल्दी

ईश्वर से करते प्रार्थना फिर से बना दो छोटा हमें...


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