क्या आज वो आया है
क्या आज वो आया है
नज़रों से नज़ारों में खोया इंसान
ढूंढ रहा उसे जाने कहां - कहां
मन में उठती यादों की लहरों से
वो अनजाना बन चला जाने कहां
अटकी साँसों से तड़पा अपने को
मगन हो बैठा खुद में बसा जाने कहां
इशारों ही इशारों में अपने दोस्त से
ये पूछता क्या आज वो आया है यहां
किस हाल में होगा मेरा वो दीवाना
शरीर यहां मन भटकता जाने कहां
क्यों आँखों में मेरी वो है खटकता
सम्भालों प्राणों के मेरे जा रहे जाने कहां
किस कसूर में आंसुओं का बहा काफिला
आजमाता हो वो इन आँखों को जाने कहां
जो बात में बात रहता था मुझको टोकता
क्या आज वो आया है ये कोई नहीं बोलता
हर आहट में मैंने उसको महसूस कर
खुद को भुला दिया अब जाने कहां
दूर हो अगर वो मुझसे चाहे लाख गुना
मैंने हर पल में उतार उसे बसाया यहां
क्यों उसकी नज़रों ने वो सब नहीं देखा
जो मैंने प्यार पाने में किया उसका यहां
होगा उसका दीवाना सारा जमाना कब से
पर क्या आज वो आया है ये कोई नहीं कहता।

