कुछ ही समय की बात है
कुछ ही समय की बात है
कुछ ही समय की बात है
बिजली के बल्ब की जगह
दिया-बाती, लालटेन, मोमबत्ती
आज के घर में बिजली
24x7 लगातार, लम्बरदार
साथ में इन्वर्टर, जेनरेटर
हमेशा रहे तैयार,
बसेरा गारा, मिट्टी, चूने के
छत फूंस सरकण्डों, व बल्ली के
घर में मिट्टी के चुहल्ले, कड़ाही
हारे, अंगीठी, कुठले, अंगीठी, गोबर के
उपले(गोसे), उपलों के बिटौड़े
बिनी हुई लकड़ियां के ढेर
घर आंगन, घेर बड़े बड़े,
परिवार बड़े थे, दिल भी,
आज परिवार है छोटा,
फिर भी दिल बड़ा है क्या??
आज घर कॉन्क्रीट, सीमेंट लोहे के
ईंधन एलपीजी, इंडक्शन हरदम तैयार
घर आंगन सिमट कर हो गए तंग
समय या तेज़ रफ़्तार!
रहो होशियार,
खेल गिल्ली-डंडा, कन्चे
कबड्डी, कुश्ती, गोल-गोल घेरा
छुपन छपाई, चड्ढी चढ़ाओ
अब के खेल, इन सब के साथ
क्रिकेट, फुटबॉल ओर मोबाइल
के साथ आभासी खेल
और खिलौनों की भरमार,
तब की सोच, खेलोगे कूदोगे
बनोगे खराब, पढ़ोगे लिखोगे
बनोगे नवाब,
अब पढ़ोगे खेलोगे दोनों ही
बनोगे नवाब,
पहले होता था, पैसा कम
साधन बहुत ही कम
खाट थी उस पर ही
ठाठ थी,
दाल, आटे पर कमाई
होती थी ख़र्च,
घर पर उगी हरी सब्जी
साग, तोरई, लौकी
घर की हांडी में बनी
दाल, मथने से मथा साग
स्वाद सबसे बेमिसाल
अब का क्या है हाल??
खेत की देसी, दाल, चावल
पड़ोसी अच्छे, सच्चे,
पैदल, साइकिल रेल से
था स्वस्थ नाता, बैल गाड़ी
रिक्शा हुआ, गुजरा जमाना
अब फ़ास्ट ट्रैन, सुपर फास्ट
सुपर हाई वे सड़क, हवाई
सफर हुआ सामान्य बात।
अब पैसा है, शान है
ब्रांड है, ऐशो आराम है
फिर भी हैरान, सब परेशान है?
सोफा तो है, सुकून है क्या??
खाट के ठाठ गायब है?
अब डाटा, सैर सपाटा पर
होता खर्च, अब है पैसा।
अस्पताल ना के बराबर थे
फिर भी रोगमुक्त थे,
आज अस्पताल है, आधुनिक
बीमारी उससे भी अत्याधुनिक।
बात चुनाव की है
बात जोड़ की भी है
पुराने संस्कार, नये विचार
कर सकते है, खुशहाल।