खुशियों की नरम धूप (पीला रंग)
खुशियों की नरम धूप (पीला रंग)
जाड़ों की खिलखिलाती महकती सुबह
मखमली चादर में नरम धूप टहल रही है
हिमालय की चोटी पर तैनात हैं साजन
इंतजार में सजना की सांस पिघल रही है
हर घड़ी कट रही है जिनके ख्यालों में
है उम्मीद खुशियों के बादल बरसाएंगे
जानते हैं तड़प रहा कोई उनकी याद में
प्रियतमा को अपनी अब और न तरसाएंगे
कहीं धूप तो कहीं छांव के घने साए हैं
चली थीं जहाँ से आज भी वहीं खड़ी हूँ
सुकून के कुछ पल पाने की जद्दोजहद में
कभी ज़माने से कभी ख़ुद से यहाँ लड़ी हूँ
खुशियों के सितारे चुनरिया में पिरोकर
पिया मिलन को घर से रात चल पड़ी है
बात ये तुम क्या जानो हम क्या हैं तुम्हारे
मगर हर जुबां से ये बात फिसल पड़ी है
साथ तुम्हारा हो तो लगता है ज़िन्दगी में
सब कुछ पा लिया कुछ नहीं अब बाक़ी है
बचे हुए चंद लम्हे भी चुरा लिए हैं तुमने
खुशी का कोई लम्हा नहीं अब बाक़ी है
कितनी कठिन होती है इंतज़ार की घड़ियाँ
हमारे बीच बढ़ते फसलों से आज है जाना
कांटों से भरी होती है मोहब्बत की हर डगर
तुम्हारा पता नहीं मगर मैंने आज है माना।

