STORYMIRROR

आचार्य आशीष पाण्डेय

Fantasy

4  

आचार्य आशीष पाण्डेय

Fantasy

शीर्षक-अरे! नयन तेरा काफ़ी था

शीर्षक-अरे! नयन तेरा काफ़ी था

1 min
216

अरे! नयन तेरा काफ़ी था

उस पर भी ये काजल फेरा

मुखड़ा तेरा मार डालता

हाय! अधर का उस पर डेरा

हुआ लाल जोड़े से घायल

हाय! उसी पर कटि का घेरा

रुप तेरा ये पागल करता

हाय! उसी पर जल घट तेरा

कोमल हाथ तेरे क्या कम थे?

जो मेहंदी का किया सवेरा

पांव तेरे कायल कर देते

फिर भी नूपुर माहवार फेरा

कटि की ज्वाला क्या कम थी जो?

उस पर रखी मेखला चेला

सुमन सजा दी क्यूं बालों पर?

भ्रमित करे वह केश अकेला

तेरे क्षितिज ही जला रहे थे

उस पर भोर सूर्य को फेरा

अरे! मेरा हित चाह रही थी या

हित में अनहित साध रही थी

मुझे करी स्वच्छंद अरे! या

मुझे स्वयं में बांध रही थी।।

इस पागल को पागल कर डाला

बिना पिलाये ही मधुशाला

घनचक्कर मैं आज हुआ हूं

अक्कड़ बक्कड़ मकड़ी का जाला

शुद्ध मेरा तन तू करती थी

या मति साधी मेरे अंधेरा

बिगड़ी हुई दशा क्या बोलूं

समझ न आता निशा सवेरा।।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Fantasy