खूबसूरत दुनिया
खूबसूरत दुनिया
वो दुनिया इतनी खूबसूरत होगी, ऐसा न मैंने सोचा था
जहां न थी कोई बन्दिशें, न बेड़ियों ने मुझे रोका था
आज़ाद पंछी की तरह भरी थी ऊंची उड़ान
मंज़िल की राहों से नहीं थी मैं अंजान
अंधेरे रास्तों पर रोशनी की लेकर मशाल
खड़ी थी एक बड़ी भीड़ विशाल
देने मुझे हौसला, कि उन्हें मुझ पर भरोसा था,
वो दुनिया इतनी खूबसूरत होगी, ऐसा न मैंने सोचा था
हर कदम विश्वास की, रोशनी का था मेला,
हर तरफ थी मुस्कुराहट, न था कोई अकेला
न किसी की शख्सियत पे, था किसी का तंज़
न किसी के आँखों में, था कोई भी रंज
हर तरफ से खुशियों के समाने का झरोखा था
वो दुनिया इतनी खूबसूरत होगी, ऐसा न मैंने सोचा था
पर जो देखा सत्य है वो, या कोई सपना था ?
है भरम मन का मेरे या ख्वाब टूटा अपना था
खोल आँखें ढूंढती हैं, फिर वही दुनिया नई
जिसकी चाहत में निगाहें बस तड़पती रह गईं
पर खुली जो नींद देखा, सच नहीं ये धोखा था
वो दुनिया इतनी खूबसूरत होगी, ऐसा न मैंने सोचा था
कब तलक यूं बन्दिशों में स्त्री की इच्छा कैद हो
कब तलक शमशेर काटने को पर मुस्तैद हों
क्या नियम, ये दायरे मिट पाएंगे दिल के कभी
क्या कभी बिन भेद के जी पाएंगे खुल के सभी,
क्या कभी सच होगा वो देखा जो स्वप्न अनोखा था?
वो दुनिया इतनी खूबसूरत होगी, ऐसा अब मैंने सोचा था।
