कुछ क्षण हीं शेष है अब तो
कुछ क्षण हीं शेष है अब तो
कुछ क्षण ही शेष है अब तो मिल जाओ तुम तो अच्छा है
कैसे मैं समझाऊँ तुमको जीवन का धागा कच्चा है
सांस में आस अब भी जगी है तुम मुझसे मिलने आओगे
आँखें बंद होने के पहले आँखों की प्यास बुझाओगे
तुम बिन मेरा जीवन सूना, सूना है मन का हर कोना
मन की व्यथा कम हो कैसे साथ मेरे अगर तुम हो ना
मैं तो तेरा हो ना पाया ना तुम मेरे हो पाए
मैं ना खुल के रो पाया कभी ना तुम खुल के हंस पाए
तन सोया है मरण शैया पर पर मन चौखट पर जा बैठा
आहट तेरी छूट ना जाए द्वार पर कान लगा बैठा
आ जाओ के अब साँसो को ना आने-जाने की मोहलत है
रक्त शिरा में ना भाग रही अब हृदय गति में गफलत है
वो क्या दिन थे जब मैं तुमको बस याद भर कर लेता था
और तुम्हारे हृदय द्वार पर मेरा प्रेम दस्तक दे देता था
लगता है अब पहले जैसा तार दिलों के जुड़े नहीं
पत्र सभी तो मिल जाते हैं संदेश एक भी मिले नहीं
बुझती नज़रें राह ताकती विश्वास अभी तक डिगा नहीं
क्या मैंने जो भेजी पाती अभी तक तुमको मिली नहीं
इससे पहले प्राण मैं त्यागूँ नर्क लोक पहुँच जाऊँ
एक बार दर्शन कर तेरा कुछ बोझ से मैं मुक्ति पाऊँ।