बुराँश
बुराँश
मेरे जंगल का गुम -सुम सा बुराँश
पर उसकी भी एक बोली है
कहता है मेरे कानों में
मेरी सूरत कितनी भोली है
अनुराग भरी नजरों से देखो
मुझमें छिपी हमजोली है
तितली आकर स्नेह बरसाये
गुंजन करते भँवरे मँडराये
इंद्रधनुष सी मेरी चुनरिया
मुझ में एक रंगोली है
चाँद अपना रूप भुलाये
सूरज चमकीली धूप भुलाये
मुझ में जादू की गोली है
मेरे संगी कहीं लाल, और कहीं गुलाबी डाल
मेरी सहेली नन्हीं एक प्योली है
आया हूँ संग बसंत को लेकर
मेरी सौगात जैसे दुल्हन नई नवेली है
डाल में रहु तो चकोर का चाँद बन जाऊँ
हृदय में आऊँ तो गज़ल बन छाउँ
परवाने से जल जाओगे
मेरी चाहत एक पहेली है।
(बुराँश और प्योली उत्तराखंड के जंगलों में खिलने वाले फूल है, जिसे देखकर प्रकृति की सुंदरता का आईना सामने आ जाता है।)
