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Savita Gupta

Fantasy

4  

Savita Gupta

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कौन हूँ मैं?

कौन हूँ मैं?

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इस प्रश्न का

जवाब ढूँढ रही हूँ ।

वक्त के पहिए के साथ

चलकर, ख़ुद को हर

कसौटी में तोलकर

सह और मात की  चाल में 

उलझकर।

मोहरों सी कभी टेड़ी, सीधी

ढाई चाल चलकर।

चाँदी होते केश

चेहरे की महीन लकीरें 

प्रश्न करते हैं।

लथपथ मसालों के गंध से।

दूर शाख़ों पर बैठे 

किलकारियाँ के गूंज से।

रिश्तों के आहुतियों से।

ज़िम्मेदारियों और कर्तव्यों की

होम के उठते धुएँ से।

कभी अपमानित अपनों के 

शब्दों के भार के डगमगाते तराज़ू से।

कई प्रश्नों के जालों में फँसी 

कौन हूँ मैं?

कभी ढूँढा है ख़ुद को?

दूसरों के वक्त के सहारे 

चलती चली गई …

कोई कहता है ममता की चाशनी

कभी स्याह रातों की रागिनी।

पीती रही नित्य मीठा ज़हर 

नहीं बस अब और नहीं 

ज़िन्दगी के महा सागर

को मथ कर निकाल लो अमृत

जी लो अपने मैं के लिए।

रच डालो एक नयीं ज़िन्दगी की किताब 

अपनी महि से अपने कोरे आसमाँ पर

बता दो ज़र्रे ज़र्रे को कि

कौन हूँ मैं?



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