वह बेशकीमती पल
वह बेशकीमती पल
वह बेधड़क मुस्कुराना
वह बेख़ौफ कागज़ की नाव बनाना
वह रिमझिम बारिश में तरबतर भीग जाना।
सब याद आता है।
वह प्यारा सा मौसम सुहाना
वह सावन के झूले पर गीतों को गाना
वह नीले आसमां में पतंग को उड़ाना।
सब याद आता है।
वह गुजरा ज़माना
वह गुनगुनी धूप में छत पर जाना
वह दादी नानी संग बैठकर बतियाना
सब याद आता है।
वह पुराना सा अफसाना
कहाँ भूल पाती हूँ
जहन में कहीं न कहीं
उसी लड़की को पाती हूँ।
कहीं न कहीं
उन बेशकीमती पलों के सिक्कों को
धरोहर की तरह जिंदगी की गुल्लक भरती हूँ
क्योंकि जीवन के पल बीत ही जाते हैं
उसके बाद आजीवन याद ही आते हैं।
