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chandraprabha kumar

Romance Fantasy

4  

chandraprabha kumar

Romance Fantasy

चॉंद और यादें

चॉंद और यादें

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चॉंद डूब गया है बदलियों में,

धक से मन रह गया है। 

कैसा तो अन्धेरा है,

सुनहरी काली बदलियॉं 

साफ़ लगता है, 

चॉंद को गोद में छिपाये हैं।


चॉंद था तो तुम थे,

याद थी, यादें थी।

एक सुनहरा उजाला था,

जिसके प्रकाश में डूबती उतराती मैं थी। 

सुनहरी झालरें देकर बदलियों को,

लो चॉंद डूब गया। 


कपोतों से बादल उड़ते हैं

मन मेरा चॉंद की झलक पाने को

प्रतीक्षा करता है। 

चॉंद के साथ तुमसे जुड़ी थी मैं

विश्वास था कहीं तुमने

पूर्णिमा में चॉंद निहारा होगा। 


अब जब बदलियॉं छँटेंगी

चॉंद की धवल ज्योत्सना 

का आच्छादन फैलेगा

तुम याद आओगे। 

तुमसे फिर जुड़ जाऊँगी मैं

यादों के भी कोई अदृश्य तन्तु होते हैं। 


यादों की डोर भी सच 

होती ही है, 

जिसका एक सिरा तुमसे जुड़ा है,

और दूसरा मुझसे। 

डोर के अदृश्य स्पर्श से

अनुभूति की सिहरन होती है।


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