कठिन रहगुजर
कठिन रहगुजर
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तुमसे मरहम की तो आस नहीं
उबलती उफ़ान भरी मगरूर नदी हो
मैं प्यासा, बंज़र
अंग-अंग से छलनी.!
कितना कठिन है रहगुज़र तुम तक पहुंचने का.!
एसा करो
अँजुरी भर पानी दे दो अपने भीतर से उड़ेल कर
राह के हादसों से लहू-लुहान ज़ख्म को धो लूँ.!
तुम्हारे दीए ज़ख्म तुम ही से ठीक होंगे शायद।।
ये जो नदियाँ होती है दरअसल
आग का दरिया ही तो है इश्क से भरा सराबोर,
जिसने भी पार करना चाहा,
इश्क की झिलमिलाती सुनहरी लपटों में
दिल को ना सेंका तो क्या ख़ाक़ इश्क किया।।