कृति विकृत क्यूँ ?
कृति विकृत क्यूँ ?
जब कुम्हार सृजन के संकल्प को मन में रख,
अपने ख्वाबों को हकीकत में बदलता है।
सोचता नहीं है क्या मिलेगा,
विश्वास रखता है सर्वोत्तम बनेगा।
आशा से उसको थपथपाता है।
अपने जीवन का उद्देश्य बनाता है।
अपने अविरल भावों से आकार देता है।
आँधी से लड़ने हेतु मज़बूत बनाता है।
तन्मयता से भावों की गहराई टटोलता है।
यह कृति सर्वश्रेष्ठ बने हेतु
उच्च विचारों से सींचता है।
कृति विकृत हो ये तो संभव नहीं।
फिर क्यों लोग यहाँ ऐसे भी होते हैं ?
पहन अमन की पोशाक नापाक इरादे रखते हैं।
दुनिया को सीधे दिखते हैं
पर राहों के काँटे होते हैं।
जुबाँ पर मीठे होते हैं
पर तरकश में तीर रखते हैं।
क्यूँ दंगे - फ़साद के सिलसिले
यूँ ही चलते रहते हैं।
क्यूँ वृद्धाश्रम बनते रहते हैं...!