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कलम का सिपाही

कलम का सिपाही

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मैं कलम का हूँ सिपाही

तुम समर के सैनिक हो

हाथ में सस्त्र तुम्हारे

अस्त्र ही कलम बन जाती

  

तुम सरहद की रखवाली करते

दुश्मन देश पर न आँख उठाये

मैं कलम से वार करकर

अपने देश को राह दिखाए


तुम्हारे तन की पीड़ा को

देश कहा सुन पाता है

मेरी कलम कराह रही

कौन इसे पढ़ पाता है


देश की रखवाली में तूने

अपने जीवन कुर्बान किया

देश के दीमक को हाँ ! मैंने

निकाल देश के नाम किया


समर भूमि में लड़कर ही

तुम अमर हो जाते हो

देश की पीड़ा लिख कर ही

सायद कुछ ही सम्मान पाते हो


रात रात भर जाग कर

सरहद पर पहरा देते हो

मैं भी रातों भर जगकर

फूलों को गजरा कर देते हैं


तुम्हारे गोले बारूदों से

आसमान दहड़ जाता है

मेरे कलम के प्रहार से

दुश्मन सहम जाता है


मेरी बंदूकों की गोली

से आवाज कहाँ आती है

पर तुम्हारे बारूदों से

घायल अधिक कर जाती है


शब्द के गोली जब दुश्मनो पर

बन कहर बरपाते है

जीवन भर न मरते न ही

चैन सकूँन से जी पाते है


धन्य मगर तुम समर बहादुर

निज मान पर कुर्बान हो

देश के खातिर तुमने ही तो

त्याग दिए सब अरमान को


तुम विजयी हो समर सिपाही 

जीते जी भी आज अमर हो गए

आज सहस्र कलम के सिपाही भी

तुम सब को नमन कर गए।


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