आदमी क्यों अब जानवर हो गया
आदमी क्यों अब जानवर हो गया
पूछता हूँ मैं खुद-ब-खुद एक सवाल,
ज़िन्दगी जानवर की क्यों है बदहाल,
इंसान क्यूँ बदल रहा है चाल-ढाल,
तुम्हारी इंसानियत पर क्यों है बवाल,
इंसान क्यों इतना निष्ठुर हो गया,
ये आदमी क्यों अब जानवर हो गया।
शिक्षित हो, बुद्धिमान हो, धार्मिक हो,
फिर पशुओं के प्रति क्यों नहीं मार्मिक हो,
प्रकृति के प्राणी जीवित जानवर भी है,
अस्थि-मज्जा, रक्त से उनका बना शरीर भी है,
प्रकृति प्रेमियों से क्यों दो-चार हो गया,
ये आदमी क्यों अब जानवर हो गया॥
पशुता मेरी अब तुझसे तो अच्छी है,
तेरी इंसानियत लेकिन अब क्यों कच्ची है,
सुई, विस्पोटक खिला बहला लिया मन,
मगर मेरी वफ़ादारी तुझसे तो सच्ची है,
अब क्यों तुम्हारा मृत जमीर हो गया,
ये आदमी क्यों अब जानवर हो गया॥
रंग बदलने में अब गिरगिट भी असफल हो गया,
तुझे पहचानना अब बड़ा मुश्किल हो गया,
तेरी विषगुणता से नाग भी डर गया,
मेरे जंगल का आवास अब तेरा घर हो गया,
इन्सां जानवर से भी क्यों बदतर हो गया,
ये आदमी क्यों अब जानवर हो गया।
ऐसा है कि मानो,मैं बेजुबां इंसान,
और तुम जुबांधारी जानवर हो गया,
शुष्क हृदय तेरा अब पाषाण हो गया,
ये आदमी इतना क्यों क्रूर हो गया,
ईश्वर की कृति का क्यों गुनाहगार हो गया,
ये आदमी क्यों अब जानवर हो गया।
पर्यावरण दिवस पर बेजुबां प्राणी का प्रश्न,
ये आदमी क्योंं अब जानवर हो गया।
