वीरों के तन का है सिंगार
वीरों के तन का है सिंगार


शूरों के तन का है सिंगार ।
खून उबलता नस- नस में
रोके पथ है किसके वश में,
आँखों से बरसे अंगारे
नभ को देखे, टूटे तारे।
भुजबल असीम, अनुपम, अपार
वीरों के तन का है सिंगार।
हैं वसन, जैसे मृगछाले हों
तन के अभेद्य रखवाले हों,
गर्जन मानो है शेर कहीं,
दहकी ज्वाला के ढेर कहीं।
दुर्धर्ष, प्रबल, घातक प्रहार
वीरों के तन का है सिंगार ।
डोले वसुधा जब चलें चाल
जैसे आता हो क्रूर काल,
कर में थामे हैं नवल अस्त्र
पथ पर जैसे गज खड़ा मस्त।
रिपु - दल ही का करना संहार
शूरों के तन का है सिंगार।
ये घोर घटा - सी छा जाते
पल-भर में प्रलय मचा जाते,
पदचाप ध्वनित नभ में ऐसे
मेघों पर तडित् रची जैसे।
करना भारत का पग पखार
वीरों के तन का है सिंगार।