दिल और दिमाग
दिल और दिमाग
दिल -
दिल कहता है बेफिक्री से जी भर जी ले,
जिंदा है तो ज़िंदादिली के ठहाके लगा ले,
मत सोच! कौन क्या सोचेगा ? क्या कहेगा ?
तू जैसा भी है, तेरा दिल ही तुझको समझेगा।।
दिमाग-
लेकिन मैं इस समाज का ही तो हिस्सा हूँ,
हर कहानी, किताब का चलता हुआ किस्सा हूँ,
समाज में रहकर कैसे परवाह न करूँ,
सभी रीति-रिवाजों को कैसे अनदेखा करूँ।।
दिल -
दिल करता है मन की सभी अभिलाषाएँ पूरी करूँ,
मन चाहता है, अपनी खुशियों के पल खुद बुनूँ ,
जैसा मैं सोचूँ, वैसा ही करूँ, वैसा ही बोलूँ,
किसी से कभी ना डरूँ, किसी के समक्ष ना झुकूँ।।
दिमाग-
कुछ बंदिशें तेरी अभिलाषाओं को तोड़ देती हैं,
तेरी खुशियों का रूख भी कहीं और मोड़ देती हैं,
सोचे अनुसार कहाँ किसी को मुकम्मल जहाँ मिला है,
किसी को अम्बर तो किसी माटी का निशाँ मिला है।।
दिल-
हे ईश्वर! मेरे दिल के सभी अरमानों को पूरा कर दे,
भाग्य की लेखनी को दिल की खुशियों से भर दे।।
