विकलांग तन से या मन से
विकलांग तन से या मन से
तन से विकलांग हूँ ,
मन से नहीं,
अँखियों के न होने पर ,
लाठी सहारा बन जाती है,
कानों की आवाज़ न होने पर, ग्समसी
मशीन उपकरण साथ निभाते हैं।
हर बार किसी भी उलझन में,
अपनी हिम्मत के बलबूते ही जीत जाती हूँ,
क्योंकि मैं तन से विकलांग हूँ,
फिर भी बेहतर जीवन चाहती हूँ।
मेरे हौसलें ही क़दमों में,
आने वाले सभी शूलों को हटाते हैं,
आगे बढ़ने की नित चाह,
हर बार मेरे काम आती है,
क्योंकि मैं तन विकलांग हूँ,
फिर भी जीवन का पल- पल जीना चाहती हूँ।
हाथ न होने पर पैरों से,
अपने स्वप्न सजाती हूँ,
हर बार हारते- हारते,
जानें किस शक्ति के दम पर जीत जाती हूँ,
क्योंकि तन से विकलांग हूँ,
लेकिन मन सब कुछ करना चाहती हूँ।