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निखिल कुमार अंजान

Drama Fantasy

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निखिल कुमार अंजान

Drama Fantasy

किसी के इश्क में

किसी के इश्क में

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किसी के इश्क़ में लुटने को जी चाहता है,

जो है ही नहीं उसे पाने को जी चाहता है,

दिल न होकर भी दिल लगाने को,

जी चाहता है।


बेगाना है जो,

उसे अपना बनाने को जी चाहता है,

मिल जाए कोई बेवफ़ा,

वफ़ा लुटाने को जी चाहता है।


सदा ग़म से रहा अपना तो गहरा नाता है,

अब दर्द ही दर्द पाने को जी चाहता है ,

जज्बातों को छिपाने को जी चाहता है,

जिंदगी में सैलाब लाने को जी चाहता है,

जो इश्क़ है ही नहीं।


उसको छिपाने को जी चाहता है,

यादों के साथ जिंदगी बिताने को,

जी चाहता है,

जी चाहता है कि न वो पास हो न साथ हो।


बस हर पल उसका एहसास हो,

वो जब मिले बस वो,

कायमत वाली रात हो,

जी चाहता रहे और तेरा ख्याल आता रहे।


ये बंदा अपने जज्बातों को यूँही दबाता रहे,

तेरी बातों और यादों में,

लुटने-लुटाने को जी चाहता है

अब तो बस तेरे इश्क़ में,

फना हो जाने की चाहता है।


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