किसी दिन...
किसी दिन...
चले आना
किसी रोज़
यूँ ही, अकारण, बेवजह
बिन पूछे, बिन कहे
मेरे घर का रास्ता
दरों दीवार, और मैं
सब मिलकर करेंगे
तुम्हारा इंतज़ार
ना सवाल हो कोई
ना जवाब ही
ना पूछूँ कुछ मैं
ना कहो तुम भी कुछ
बस थोड़ी तन्हाई हो
और कुछ खामोशी
कुछ तुम्हारी ओर से
और कुछ मेरी ओर से
ना कोई विचार हो
ना धड़कनों का शोर
बंद आँखों से सब दिखे
महसूस हो ज़ज़्बात
शाम के झुरमुट में
ना दिन हो, ना रात ही
सिर्फ आपसी समझ हो
और प्यार का एहसास।।