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एक बार सोचना जरूर

एक बार सोचना जरूर

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सुना था शाख से टूटना पत्तों का,

और किसी की चाहत के लिए तारों का,

देखे हैं हाथ से छूटकर टूटते बर्तन,

या समुद्र किनारे रेत के घर !


कमज़ोर हड्डियाँ टूटती हैं कड़कड़ा कर,

रिश्ते भी टूट जाते हैं कभी अचानक,

देखा तो नहीं पर सुना है जरूर,

टूट जाता है आदमी भी बेआवाज !


टूट जाते हैं दिल भी कई बार,

बेआवाज़ बेवजह, अचानक यूँ ही,

दर्द तो होता ही होगा टूटने पर,

ख़ामोश, अदृश्य, अनकहा, अवयक्त-सा !


जो टूट जाते हैं एक बार कहीं,

जुड़ नहीं पाते वो फिर कभी,

एक बार बिखर जाने पर,

फिर से सिमट नहीं पाते !


तुम भी कुछ तोड़ने से पहले,

एक बार सोचना ज़रूर !


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