जीवन संध्या
जीवन संध्या
अब इस जीवन की संध्या में,
कैसे कहूँ तुम ख़ुशियाँ ला दो !
सूखने को हैं सब पत्ते फूल,
कैसे कहूँ इन्हें फिर से खिला दो !
मर चुकी जहाँ आशायें सारी,
कैसे कहूँ मुझमें आस जगा दो !
घिरा आ रहा है जहाँ घना अंधेरा,
कैसे कहूँ इक नया दीप जला दो !
जानती हूँ जब खुद ही सब कुछ,
कैसे कहूँ कुछ और बता दो !
किन्तु इस विदाई की बेला में,
मेरे लिये बस तुम मुस्कुरा दो !