किस पनघट पर ढूँढूँ ज़िंदगी
किस पनघट पर ढूँढूँ ज़िंदगी
किस पनघट पर ढूँढूँ तुझे ए-ज़िंदगी
हर नीर की बूँद में बसती है ज़िंदगी
जाने कहाँ खो गई मेरी ज़िंदगी।
हर माटी की नमी में बसती है ज़िंदगी
धरा के कण-कण में ढूँढूँ तुझे ज़िंदगी
जाने कहाँ लुप्त हो गई मेरी ज़िंदगी।
हर नदिया की धारा में बसती है ज़िंदगी
दरिया के पय-पय में ढूँढूँ तुझे ज़िंदगी
पर जाने कहाँ बह गई मेरी ज़िंदगी।
उन हवाओं की साएँ-साएँ में बसती है ज़िंदगी
चलती पवन के वेग में ढूँढूँ तुझे ज़िंदगी
पर जाने कहाँ उड़ गई मेरी ज़िंदगी।
हर पात-पात में बसती है ज़िंदगी
दरख्तों के पत्तों में ढूँढूँ तुझे जिंदगी
पर जाने कहाँ पत्रक में छुप गई मेरी ज़िंदगी।
हर जलधर की बूँद-बूँद में बसती है ज़िंदगी
उन नभ के मेघों में ढूँढूँ तुझे ज़िंदगी
जाने कहाँ बादलों में छिप गई मेरी ज़िंदगी।
ताल की हर लहर में बसती है ज़िंदगी
हर पोखर के तल में ढूँढूँ तुझे जिंदगी
जाने कहाँ तलहटियों में बैठ गई मेरी ज़िंदगी।
फिर मैंने स्वयं ढूँढा तुझे मेरी ज़िंदगी
तू मेरी पलकों से आँसू बन बह रही थी ज़िंदगी।
मेरे ही दिल की धड़कनों में धड़क रही थी ज़िंदगी।
मेरे टूटे हुए ख्वाबों में अभी भी बसी थी तू ज़िंदगी।
मेरे बागों के फूलों में अभी भी खिली थी तू ज़िंदगी।
और तो और
मेरे टूटे हुए दर्पण में अब भी साँस ले रही थी तू ज़िंदगी।
मेरे अंतः मन के प्रेम, प्यार, राग सब जगह बसी थी
तू ज़िंदगी।
मेरी अंतरात्मा में दीया बन प्रज्वलित हो रही थी
तू ज़िंदगी।