ख़त्म होती मेरी सजा ही नहीं
ख़त्म होती मेरी सजा ही नहीं
ख़त्म होती मेरी सजा ही नहीं।
जबकि मेरी कोई ख़ता ही नहीं।
प्यार करता हूँ टूट कर जिसको,
आज तक ये उसे पता ही नहीं।
बात छोटी सी थी मेरी लेकिन,
साल-हा-साल कुछ कहा ही नहीं।
हुस्न वाले मुझे मिले कितने,
बाद उसके कोई जँचा ही नहीं।
वो जवानी भी क्या जवानी है,
दिल जो दिल से कभी जुड़ा ही नहीं।
ज़िंदगी भर का रोग है ये तो,
इश्क़ के दर्द की दवा ही नहीं।
कैसे लिख दूँ मैं प्यार के नग्मे,
प्यार मुझको कभी मिला ही नहीं।